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Sunday, September 2, 2018

महाकाली महाविजय यन्त्र / कवच धारण से लाभ




१.  महाकाली की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है | स्थायी सम्पत्ति में विशेष वृद्धि होती है और     स्थावर सम्पत्ति विषयक मामलों में विशेष सफलता मिलती है |

२.  शत्रु पराजित होते है,  शत्रु की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है,  उसका स्वयं विनाश होने लगता है |

३.  मुकदमो में विजय मिलती है ,वाद विवाद में सफलता मिलती है | सर्वत्र विजय का मार्ग प्रशस्त होता है |

४. कर्मचारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,व्यक्तित्व का प्रभाव बढ़ता है | सम्मान प्राप्त होता है, आभामंडल की नकारात्मकता समाप्त होती हैं | शरीर का तेज बढ़ता है |

५. मानसिक चिंता, विचलन, डिप्रेसन से बचाव होता है और राहत मिलती है | पूर्णिमा -अमावस्या के मानसिक विचलन में कमी आती है |

६. किसी अभिचार /तंत्र क्रिया द्वारा अथवा किसी आत्मा आदि द्वारा शरीर को कष्ट मिलने से बचाव होता है |

७. पारिवारिक सुख ,दाम्पत्य सुख बढ़ जाता है |पौरुष अथवा काम क्षमता में वृद्धि होती है ,दाम्पत्य जीवन की संतुष्टि बढ़ जाती है |

८. नौकरी ,व्यवसाय ,कार्य में स्थायित्व प्राप्त होता है | व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है |

९. वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,पहले से कोई प्रभाव हो तो क्रमशः धीरे धीरे समाप्त हो जाती है |

१०. तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,भविष्य की किसी संभावित क्रिया से सुरक्षा मिलती है |किये -कराये -टोने -टोटके की शक्ति क्रमशः क्षीण होते हुए समाप्त होती है |

११. परीक्षा ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |हीन भावना में कमी आती है ,खुद पर विश्वास बढ़ता है |एकाग्रता बढती है तथा उत्साह ,ऊर्जा में वृद्धि होती है |

१२. भूत-प्रेत-वायव्य बाधा की शक्ति क्षीण होती है ,क्योकि इसमें से निकलने वाली सकारात्मक तरंगे उनके नकारात्मक ऊर्जा का ह्रास करते हैं और उन्हें कष्ट होता है |

१३. उग्र देवी होने से नकारात्मक शक्तियां इनसे दूर भागती हैं और धारक के पास आने से कतराती हैं |किसी वायव्य बाधा का प्रभाव शरीर पर कम हो जाता है |

१४. मांगलिक ,पारिवारिक कार्यों में आ रही रुकावट दूर होती है |ग्रह बाधाओं का प्रभाव कम होता है |शनि -राहू -केतु के दुष्प्रभाव की शक्ति क्षीण होती है |

१५. नपुंसकता ,स्त्रियोचित समस्या ,काम उत्साह में कमी ,कार्यक्षमता में कमी दूर होती है | यदि बंधन आदि के कारण संतानहीनता है तो बंधन समाप्त होता है |

१६. शरीर में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाह बढने से आत्मबल और कार्यशीलता में वृद्धि होती है | कोशिका क्षय की दर कम होती है |

१७. आलस्य ,प्रमाद का ह्रास होता है |व्यक्ति की सोच में परिवतन आता है ,उत्साह में वृद्धि होती है | नया जोश उत्पन्न होता है |

१८. किसी भी व्यक्ति के सामने जाने पर सामने वाला प्रभावित हो बात मानता है और उसका विरोध क्षीण होता है | पारिवारिक कलह ,विवाद कम हो जाता है तथा लोगों पर आकर्षक शक्तियुक्त प्रभाव पड़ता है |

१९. घर -परिवार में स्थित नकारात्मक ऊर्जा की शक्ति क्षीण होती है जिससे उसका प्रभाव कम होने लगता है |पारिवारिक सौमनस्य में वृद्धि होती है |

२०. जाँघों -कमर के दर्द ,नसों अथवा हड्डियों की समस्या ,लकवा अथवा किसी अंग की कम क्रियाशीलता में सुधार होता है |मोटापे की समस्या ,प्रमाद -आलस्य -उत्साह में कमी -साहस की कमी में राहत मिलती है |

२१. स्थान दोष ,मकान दोष ,पित्र दोष ,वास्तु दोष का प्रभाव व्यक्ति पर से कम हो जाता है क्योकि अतिरिक्त ऊर्जा का संचार होने लगता है उसमे |

२२. मूलाधार की विकृति ,कमी का प्रभाव क्रमशः सुधरने लगता है ,इसकी अति सक्रियता अथवा कम सक्रियता से उत्पन्न दोषों में सुधार होता है | यन्त्र के साथ जुडी भगवती की ऊर्जा व्यक्ति के बिना कुछ किये उसके मूलाधार को प्रभावित कर सुधार करती है |

२३. मूलाधार के दोष से आ रही किसी भी शारीरिक -मानसिक परेशानी में सुधार होने से व्यक्ति का व्यक्तित्व बदलने लगता है और नकारात्मक उर्जाये हटने से उसका आभामंडल तेजस्वी बनता है |

यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से भी प्राप्त होते है और साधना से भी |,यन्त्र में उसे बनाने वाले साधक का मानसिक बल ,उसकी शक्ति से अवतरित और प्रतिष्ठित भगवती की पारलौकिक शक्ति होती है जो वह सम्पूर्ण प्रभाव प्रदान करती है जो साधना में प्राप्त होती है |,अतः आज के समय में काली की साधना अथवा यन्त्र धारण बेहद उपयोगी है किन्तु धारणीय यन्त्र का यदि उपयुक्त लाभ प्राप्त करना हो तो ,कम से कम २१ हजार मूल मन्त्रों से अभिमन्त्रण और उपयुक्त मुहूर्त में विधिवत तांत्रिक विधि से प्राण प्रतिष्ठा होना आवश्यक है, अन्यथा मात्र रेखाएं खींचने से कुछ नहीं होने वाला ,जबतक की उन रेखाओं में भगवती को प्रतिष्ठित न किया जाए और उपयुक्त शक्ति न प्रदान की जाए |


Saturday, September 1, 2018

महाकाली महाविजय कवच


गवती महाकाली दस महाविद्याओ में से एक प्रमुख महाविद्या शक्ति और काली कुल की अधिष्ठात्री है ,जिन्हें सृष्टि की मूल शक्ति कहा जाता है और इन्ही से समस्त महाविद्याओं की उत्पत्ति हुई है | समस्त महाविद्यायें ,समस्त शक्तियां इन्ही का विस्तार और स्वरुप हैं | यह वह मूल विद्या हैं जो इस ब्रह्माण्ड में सबकुछ दे सकने में समर्थ हैं | केवल यही वह महाविद्या हैं हैं जिनको शांत करने के लिए शिव को भी पैरों के नीचे आना पड़ता है | यही वह शक्ति हैं जिनके निकलने पर शिव भी शव हो जाते हैं | इनके बिना किसी शक्ति की उत्पत्ति ही संभव नहीं | जब सारे रास्ते बंद हो जाएँ तब यह एकमात्र शक्ति हैं जो सारे रास्ते खोल सकती हैं |जहाँ सभी महाविद्याओं का किसी कार्य विशेष में प्रभाव कम पड़ता है तब उनके साथ काली को ही संयुक्त करना पड़ता है | इन्ही से सृष्टि उत्पन्न होती है और इन्ही में विलीन हो जाती है | सभी महाविद्याओं का कार्यक्षेत्र सृष्टि उत्पत्ति से पालन और विभिन्न समस्याओं का निवारण तक है किन्तु भगवती काली ही वह हैं जो पुनः उत्पन्न कर सकती हैं ,कर्मानुसार स्थान दे सकती हैं यहाँ तक की केवल यही इस भवसागर से मुक्त भी कर सकती हैं अर्थात केवल यही मोक्ष दे सकती हैं | यही मूलाधार की अधिष्ठात्री हैं जिसके बिना न जीवन उत्पन्न हो सकता है न सृष्टि हो सकती है | इन्ही सब कारणों से तांत्रिक समुदाय में मूल उपास्या यही होती हैं और चाहे वैदिक ग्रन्थ हो ,शास्त्र हों ,तांत्रिक हों ,बौद्ध हों ,जैन हो अथवा कोई भी साधना हो ,पद्धति हो ,शास्त्र हों काली हर जगह उपस्थित होती हैं ,स्वरुप और नाम अलग हो सकता है |

यह पौराणिक ग्रन्थ मार्कंडेय पुराण के सप्तशती में दुर्गा के स्वरूपों में भी हैं जिन्हें वैष्णव , वैदिक और तांत्रिक सभी मानते हैं ,यह ब्रह्म पुराण के दस महाविद्या में भी हैं जो तंत्र का मूल ग्रन्थ में से एक है ,यह सभी आगमों में भी उपस्थित हैं तो इनके बिना निगम भी अधूरे हैं |इनकी उपस्थिति वेदों में भी है तो ज्योतिष में भी है और तंत्र में तो आवश्यक रूप से हैं ही |अन्य महाविद्यायें अथवा दुर्गा के अन्य स्वरुप एक दुसरे के मूल ग्रंथों में कम मिलते हैं पर काली हर जगह अनिवार्य रूप से होती हैं |इसी से इनके प्रभाव को समझा जा सकता है |इनके बिना कुंडलिनी जाग्रत नहीं हो सकती क्योकि कुंडलिनी इन्ही के अधीन और इन्ही के क्षेत्र में होती है |इनकी सक्रियता के बिना न कुंडलिनी सक्रीय हो सकती है न तो जीव ही कार्यरत रह सकता है और न ही वह कोई सृष्टि अर्थात संतान ही उत्पन्न कर सकता है |यही श्यामा रूप में पूजित होती हैं ,यही कामाख्या रूप में पूजित होती हैं ,यही दुर्गा रूप में पूजित होती हैं और यही श्री विद्या रूप में भी पूजित होती हैं |यह श्री विद्या के साथ संयुक्त होने पर श्यामा सुंदरी हो जाती हैं ,और रूद्र के साथ जुडकर रुद्रकाली हो जाती हैं |

महाकाली यन्त्र माता काली का निवास माना जाता है जिसमे वह अपने अंग विद्याओ ,शक्तियों ,देवों के साथ निवास करती है ,अतः यन्त्र के साथ इन सबका जुड़ाव और सानिध्य प्राप्त होता है ,|त्रिकोण इन्ही का यंत्र है जिसके बिना किसी महाविद्या का यन्त्र नहीं बनता अर्थात यह सभी में आवश्यक रूप से उपस्थित होती हैं | कोई भी त्रिकोण स्वतंत्र रूप से इन्ही को व्यक्त करता है जबकि यही त्रिकोण आपस में संयुक्त होकर अन्य महाविद्याओं को प्रकट करने लगता है |काली यन्त्र के अनेक उपयोग है ,यह धातु अथवा भोजपत्र पर बना हो सकता है ,पूजन में धातु के यन्त्र का ही अधिकतर उपयोग होता है ,पर सिद्ध व्यक्ति से प्राप्त भोजपत्र पर निर्मित यन्त्र बेहद प्रभावकारी होता है ,,धारण हेतु भोजपत्र के यन्त्र को धातु के खोल में बंदकर उपयोग करते है ,,जब व्यक्ति स्वयं साधना करने में सक्षम न हो तो यन्त्र धारण मात्र से उसे समस्त लाभ प्राप्त हो सकते है  |
भगवती काली की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है ,शत्रु पराजित होते है ,सर्वत्र विजय मिलती है ,मुकदमो में विजय मिलती है ,अधिकारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,शत्रु का विनाश होने लगता है ,,ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ,व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,सम्मान प्राप्त होता है ,वाद-विवाद में सफलता मिलती है ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |किसी भी अभिचार का प्रभाव कम हो जाता है |छोटे मोटे टोटके -नजर प्रभावित नहीं कर पाती |आकर्षण -वशीकरण का प्रभाव बढ़ता है |किसी भी साधना -उपासना में होने वाली त्रुटी का दुष्प्रभाव रुकता है |वायव्य आत्माओं और बाधाओं का शरीर पर प्रभाव कम हो जाता है अथवा समाप्त हो जाता है ,,यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से भी प्राप्त होते है और साधना से भी ,साधना से व्यक्ति में स्वयं यह शक्ति उत्पन्न होती है ,यन्त्र धारण से यन्त्र के कारण यह उत्पन्न होता है ,अतः आज के समय में यह साधना अथवा यन्त्र धारण बेहद उपयोगी है |

जो लोग शत्रु-विरोधी से परेशान है ,अधिकारी वर्ग से परेशान है ,वायवीय बाधाओं से परेशान हो ,नवग्रह पीड़ा से पीड़ित हो ,,जिनके कार्य क्षेत्र में खतरे की संभावना हो ,दुर्घटना की संभावना अधिक हो |स्थायित्व का अभाव हो ,बार बार स्थानान्तरण से परेशान हों ,थक से कार्य न कर पाते हों ,ऊर्जा -उत्साह -शक्ति की कमी हो ,जिन्हें बहुत लोगों को नियंत्रित करना हो उनके लिए यह बहुत उपयोगी है |जो लोग बार-बार रोगादि से परेशान हो ,असाध्य और लंबी बीमारी से पीड़ित हो अथवा बीमारी हो किन्तु स्पष्ट कारण न पता हो |कोई अंग ठीक से कार्य न करता हो |स्वास्थ्य कमजोर हो |नपुंसकता हो अथवा स्त्रियों में स्त्री जन्य समस्या हो ,डिम्भ बन्ने में समस्या हो ,कमर -जाँघों -हड्डियों की समस्या हो ,मोटापे से परेशान हों ,आलस्य हो ,कहीं मन न लगता हो ,चिंता ,तनाव ,डिप्रेसन हो ,पूर्णिमा -अमावस्या को डिप्रेसन अथवा मन का विचलन होता हो उन्हें काली यन्त्र धारण करना चाहिए |

जिन्हें हमेशा बुरा होने की आशंका बनी रहती हो ,खुद अथवा परिवार के अनिष्ट की सम्भावना लगती हो ,अकेले में भय लगता हो अथवा बुरे स्वप्न आते हों ,कभी महसूस हो की कमरे में अथवा साथ में उनके अलावा भी कोई और है किन्तु कोई नजर न आये |कभी लगे कोई छू रहा है अथवा पीड़ित कर रहा है ,कभी कोई आभासी व्यक्ति दिखे अथवा आत्मा परेशान करे |कभी अर्ध स्वप्न में कोई छाती पर बैठ जाए ,लगे कोई गला दबा रहा है |किसी के साथ कोई शारीरिक सम्बन्ध बनाये किन्तु वह दिखाई न दे अथवा स्वप्न या निद्रा में ऐसा हो |बार -बार स्वप्न में कोई स्त्री -पुरुष दिखे जिससे दिक्कत महसूस हो |आय के स्रोतों में उतार-चढ़ाव से परेशान हो ,ऐसा लगता हो की किसी ने कोई अभिचार किया हो सकता है या लगे की कोई अपना या बाहरी अनिष्ट चाहता है तो ऐसे व्यक्तियों को भगवती काली की साधना -आराधना-पूजा करनी चाहिए साथ ही सिद्ध साधक से बनवाकर काली यंत्र चांदी के ताबीज में धारण करना चाहिए |यदि साधना उपासना न कर सकें तो भी कवच अवश्य पहनना चाहिए |

यदि आप में हीनभावना है ,आलस्य है ,चंचलता की कमी है दब्बू स्वभाव है ,हर कोई आपको दबाना चाहता है ,काम क्षमता में कमी है ,पौरुष में कमी है ,शुक्राणु में कमी हो ,यौन सुख पूर्ण प्राप्त न कर सके ,स्तम्भन का अभाव हो ,खुद को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते ,किसी के सामने बात करने में हिचकिचाते हैं ,शारीरिक कमजोरी है अथवा अधिक मोटापा है |स्त्रियों में मासिक गड़बड़ी रहती है ,मूत्र रोग ,बार बार इन्फ़ेक्सन आदि यौनांग में होते हैं ,यौनेच्छा में कमी रहती है ,कभी यौनेच्छा की अति हो ,डिम्भ आदि की समस्या आती हो ,बंध्यापन हो ,रक्ताल्पता हो या अधिक रक्त बहता हो ,अतिरज मासिक हो ,तनाव ,हिस्टीरिया ,पागलपन ,मानसिक बाधाएं हों ,फोबिया ,भूत प्रेत की बाधाएं हों ,चिंता ,अनहोनी की आशंका हो ,भय महसूस हो ,प्रलाप करे ,कभी कभी हिंसक प्रवृत्ति जागे और कभी कायरता अथवा हींन भावना ,कमर में दर्द हो ,कमर की हड्डी में आवाज आये ,जाँघों और नसों की समस्या उतपन्न हो ,कमर का हिस्सा अधिक मोटा हो जाए जबकि जांघ और पैर पतले हों ,आलस्य रहे ,पसीने की गंध तेज हो ,कभी अकेले में महसूस हो की कोई और है कमरे में या साथ में पर कुछ दिखे नहीं ।कभी सोये हुए में किसी अदृश्य की अनुभूति हो या स्पर्श लगे तो समझें कि मूलाधार विकृत है अथवा कमजोर है ।भगवती काली रुष्ट हैं ,उनकी ऊर्जा की कमी है ।कुंडली में शनि + शुक्र + बुद्ध की स्थिति अच्छी नहीं अथवा वह समस्या उतपन्न कर रहा।इस स्थिति में काली का यन्त्र धारण करता लाभदायक होता है |
यन्त्र निर्माण काली साधक द्वारा ही हो सकता है और इसकी शक्ति साधक की शक्ति पर निर्भर करती है |यन्त्र निर्माण के बाद इसकी तंत्रोक्त प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होती है क्योंकि काली तंत्र की शक्ति हैं |इसके बाद इसका अभिमन्त्रण काली के मूल मंत्र से होता है |अभिमन्त्रण बाद हवन आवश्यक होता है |हवन के बाद इसी हवन के धुएं में चांदी के कवच में यन्त्र को भरकर धूपित भी किया जाता है| यहाँ साधक विशेष की जानकारी के अनुसार कवच में काली की ऊर्जा से सम्बन्धित वस्तुएं भी भरी जाती हैं -जैसे हम विशिष्ट जड़ी -बूटियाँ जो हमारे काली अनुष्ठान के समय अभिमंत्रित होती हैं इनमे यन्त्र के साथ रखते हैं ,हवन भष्म इसमें रखते हैं आदि |यह यन्त्र यदि पूर्ण अभिमंत्रित है तो बेहद शक्तिशाली हो जाता है |इसका परीक्षण उच्च स्तर का साधक कर सकता है अथवा जिन्हें भूत -प्रेत जैसी कोई समस्या हो उसके हाथ में रखते ही इसका प्रभाव मालूम होने लगता है | 

यन्त्र /कवच का निर्माण मात्र काली का सिद्ध साधक ही कर सकता है क्योंकि काली तंत्र की देवी हैं और यन्त्र निर्माण में तंत्रोक्त पद्धति का ही प्रयोग होता है ,सामान्य कर्मकांडी अथवा साधक इसे नहीं बना सकता ,न ही किसी अन्य महाविद्या अथवा देवी -देवता का साधक इसे निर्मित कर सकता है |


Wednesday, September 20, 2017

Sharad Navratri-2017

 Auspicious Kalash Sthapana Mahurat and Vidhi (21Sep,17 to 29Sep,17)



स्थापना का शुभ मुहुर्त (Auspicious Time-6:03AM-8:05AM IST)
गुरुवार सुबह 6:03 मिनट से 8:05 मिनट तक का समय कलश स्थापना के लिए अति शुभ है। यदि इतनी जल्दी स्थापना नहीं कर सकते हैं तो सुबह 10:23 मिनट से लेकर 12:41 मिनट के बीच का समय भी कलश स्थापना के लिए शुभ है।

माता की चौकी सजाएं

घर के ईशानकोण यानी उत्तर—पूर्व दिशा में माता की चौकी सजाएं। इसके लिए सबसे पहले पीले चावलों से चौक सजाएं, उसके उपर चौकी रखें। यदि उत्तर पूर्व में न हो सके तो उत्तर दिशा या फिर पूर्व दिशा में चौकी ऐसे रखें कि पूजन के वक्त आपका मुंह पूर्व या उत्तर की ओर हो। चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। उस पर पीले चावल से छोटा स्वास्तिक बनाकर कलावे से लिपटी सुपारी गणपति के प्रतिमा के तौर पर रखें व माता की तस्वीर या मूर्ति रखें।

कलश स्थापित करने की विधि

सबसे पहले शुद्ध साफ मिट्टी या तांबे का कलश लें। कलश में पानी भरें व थोड़ा गंगा जल डालें। फिर उसमें साबुत हल्दी की गांठ, अक्षत यानी चावल, बताशा, सुपारी और दूब घास डालें। कलश के गले वाले स्थान पर कलावा बांधें। अब पूजा की चौकी के उत्तर पूर्व हिस्से में थोड़ी मिट्टी डालें। उसके उपर कलश रखें। मिट्टी में चाहें तो जौ बो सकते हैं? कलश पर आम या अशोक के पांच पत्ते रखकर उसे ढंक दें। ढक्कन में अनाज रखकर, उपर सूखा नारियल रखें। कलश पर स्वास्तिक बनाएं। फिर देवी देवताओं का आवाहन करके संकल्प लें और धूप, दीप, रोली, अक्षत, पुष्प और नैवेद्य आदि समर्पित करके पूजा प्रारंभ करें। संभव हो तो दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा पढें।

Thursday, August 31, 2017

दुर्गा सप्तशति - Durga Saptashati


Durga Saptashati is a Hindu religious text describing the victory of the goddess Durga over the demon Mahishasura. Durga Saptashati is also known as the Devi Mahatmyam, Chandi Patha (चण्डीपाठः) and contains 700 verses, arranged into 13 chapters.

दुर्गा सप्तशति का कौन सा अध्याय करता है हमारी मनोकामना पूरी और क्या फल है इसके
दुर्गा सप्तशती के अध्याय से कामनापूर्ति-


1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
"The first chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaying of Madhu and Kaitabha' ".

2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
"The second chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaughter of the armies of Mahishasura' ".

3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
"The third chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaying of Mahishasura' ".

4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
"The fourth chapter of Durga Saptashati is based on 'Devi Stuti' ".

5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
"The fifth chapter of Durga Saptashati is based on 'Devi's conversation with the messenger' ".

6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
"The sixth chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaying of Dhumralochana' ".

7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
"The seventh chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaying of Chanda and Munda' ".

8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
"The eighth chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaying of Raktabija' ".

9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
"The ninth chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaying of Nishumbha' ".

10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामनाएवं पुत्र आदि के लिये।
"The tenth chapter of Durga Saptashati is based on 'the slaying of Shumbha' ".

11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
"The eleventh chapter of Durga Saptashati is based on 'Hymn to Narayani' ".

12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
"The twelfth chapter of Durga Saptashati is based on 'Eulogy of the Merits' ".

13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।
"The thirteenth chapter of Durga Saptashati is based on 'the bestowing of boons to Suratha and Vaisya' ".


Thursday, August 24, 2017

गणेश जी के 108 नाम

The Shree Siddhivinayak Ganapati Mandir is a Hindu temple dedicated to Lord Shri Ganesh. It is located in Prabhadevi, Mumbai, Maharashtra.

आधुनिक समय में अधिकतर सभी व्यक्ति किसी ना किसी परेशानी से त्रस्त रह रहे हैं. इस परेशानी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है यदि सुबह के समय गणेश जी के 108 नाम लिए जाएँ. गणेश जी को वैसे भी विघ्नहर्त्ता कहा गया है. गणेश जी के 108 नाम और उनके अर्थ निम्नलिखित हैं :-

1)  बालगणपति (Baalganapati) -  सबसे प्रिय बालक
2)  भालचन्द्र (Bhalchandra) -  मस्तक पर चंद्रमा
3)  बुद्धिनाथ (Buddhinath) - बुद्धि के भगवान
4)  धूम्रवर्ण (Dhumravarna) - धुंए को उड़ाने वाला
5)  एकाक्षर (Ekakshar) - एकल अक्षर
6)  एकदन्त (Ekdant) -  एक दांत वाले
7)  गजकर्ण (Gajkarn) - हाथी की आंखें
8)  गजानन (Gajaanan) - हाथी मुँख वाले
9)  गजनान (Gajnaan) -  हाथी के मुख वाले
10)  गजवक्र (Gajvakra) - हाथी जैसा मुंह
11)  गजवक्त्र (Gajvaktra) -
12)  गणाध्यक्ष (Ganaadhyaksha) - गणों का मालिक
13)  गणपति (Ganapati) -  गणों का मालिक
14)  गौरीसुत (Gaurisut) - माता गौरी का बेटा
15)  लम्बकर्ण (Lambakarn) - बड़े कान वाले देव
16)  लम्बोदर (Lambodar) - बड़े पेट वाले
17)  महाबल ( Mahaabal) - अत्यधिक बलशाली
18)  महागणपति (Mahaaganapati) - देवातिदेव
19)  महेश्वर (Maheshwar)  - ब्रह्मांड के भगवान
20)  मंगलमूर्त्ति  (Mangalmurti) -  शुभ कार्य के देव
21)  मूषकवाहन (Mushakvaahan -  जिसका सारथी मूषक
22)  निधिश्वरम (Nidishwaram) -  धन और निधि के दाता
23)  प्रथमेश्वर  (Prathameshwar) -  सब के बीच प्रथम
24)  शूपकर्ण (Shoopkarna) -  बड़े कान वाले देव
25)  शुभम (Shubham) -  शुभ कार्यों के प्रभु
26)  सिद्धिदाता (Siddhidata) -  इच्छाओं के स्वामी
27)  सिद्दिविनायक (Siddhivinaayak) -  सफलता के स्वामी
28)  सुरेश्वरम (Sureshvaram) -  देवों के देव
29)  वक्रतुण्ड (Vakratund) -  घुमावदार सूंड
30)  अखूरथ (Akhurath) -  जिसका सारथी मूषक है
31)  अलम्पत (Alampat) -  अनन्त देव
32)   अमित ( Amit) - अतुलनीय प्रभु
33)  अनन्तचिदरुपम ( Anantchidrupam) -  अनंत चेतना
34)  अवनीश  (Avanish) -  पूरे विश्व के प्रभु
35)  अविघ्न (Avighn) - बाधाओं को हरने वाले
36)  भीम (Bheem) -  विशाल
37)  भूपति ( Bhupati) -  धरती के मालिक
38)  भुवनपति (Bhuvanpati) -  देवों के देव
39)  बुद्धिप्रिय ( Buddhipriya) - ज्ञान के दाता
40)  बुद्धिविधाता (Buddhividhata) -  बुद्धि के मालिक
41)  चतुर्भुज (Chaturbhuj) -  चार भुजाओं वाले
42)  देवदेव (Devdev) -  सभी भगवान में सर्वोपरी
43)  देवांतकनाशकारी (Devantaknaashkari) -  बुराइयों और असुरों के विनाशक
44)  देवव्रत (Devavrat) -  तपस्या स्वीकार करने वाले
45)  देवेन्द्राशिक (Devendrashik) -  सभी देवताओं के रक्षक
46)  धार्मिक (Dharmik) -  दान देने वाला
47)  दूर्जा (Doorja) -  अपराजित देव
48)  द्वैमातुर (Dwemaatur) -  दो माताओं वाले
49)  एकदंष्ट्र  (Ekdanshtra) -  एक दांत वाले
50)  ईशानपुत्र (Ishaanputra) - शिव के बेटे
51)  गदाधर (Gadaadhar) -  जिसका हथियार गदा
52)  गणाध्यक्षिण  (Ganaadhyakshina) - पिंडों के नेता
53)  गुणिन  (Gunin) -  सभी गुणों क ज्ञानी
54)  हरिद्र ( Haridra) -  स्वर्ण के रंग वाला
55)  हेरम्ब (Heramb) -  मां का प्रिय पुत्र
56)  कपिल (Kapil) -  पीले भूरे रंग वाला
57)  कवीश (Kaveesh ) -  कवियों के स्वामी
58)  कीर्त्ति (Kirti) -  यश के स्वामी
59)  कृपाकर ( Kripakar) - कृपा करने वाले
60)  कृष्णपिंगाश (Krishnapingash) -  पीली भूरी आंखवाले
61)  क्षेमंकरी (Kshemankari) -  माफी प्रदान करने वाला
62)  क्षिप्रा (Kshipra) -  आराधना के योग्य
63)  मनोमय  (Manomaya) - दिल जीतने वाले
64)  मृत्युंजय (Mrityunjay) - मौत को हरने वाले
65)  मूढ़ाकरम (Mudhakaram) -  जिन्में खुशी का वास
66)  मुक्तिदायी ( Muktidaayi ) - शाश्वत आनंद के दाता
67)  नादप्रतिष्ठित  (Naadpratishthit) -  जिसे संगीत से प्यार हो
68)  नमस्तेSत  (Namastetu) -  सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले
69)  नन्दन (Nandan) -  भगवान शिव का बेटा
70)  पाषिण  (Pashin) -
71)  पीताम्बर (Pitaamber) -  पीले वस्त्र धारक
72)  प्रमोद  (Pramod) - आनंद
73)  पुरुष  (Purush) - अद्भुत व्यक्तित्व
74)  रक्त  (Rakta) -  लाल रंग के शरीर वाला
75)  रुद्रप्रिय  (Rudrapriya) -  शिव के चहेते
76)  सर्वदेवात्मन (Sarvadevatmana) -  सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता
77)  सर्वसिद्धांत (Sarvasiddhanta) -  कौशल और बुद्धि के दाता
78)  सर्वात्मन (Sarvaatmana) - ब्रह्मांड के रक्षक
79)  शांभवि (Shambhavi) -
80)  शशिवर्णम (Shashivarnam) -  रंग चंद्रमा को भाता हो
81)  शुभगुणकानन (Shubhagunakaanan) -  सभी गुण के गुरु
82)  श्वेता (Shweta ) -  जो सफेद रंग में शुद्ध है
83)  सिद्धिप्रिय (Siddhipriya ) -  इच्छापूर्ति वाले
84)  स्कन्दपूर्वज  (Skandapurvaj) - कार्तिकेय के भाई
85)  सुमुख  (Sumukha)-  शुभ मुख वाले
86)  स्वरुप  (Swarup) - सौंदर्य के प्रेमी
87)  तरुण  (Tarun ) - जिसकी कोई आयु न हो
88)  उद्दण्ड  (Uddanda) -  शरारती
89)  उमापुत्र  (Umaputra) - पार्वत के बेटे
90)  वरगणपति  (Varganapati) - अवसरों के स्वामी
91)  वरप्रद  (Varprada) - इच्छाओं के अनुदाता
92)  वरदविनायक  (Varadvinaayak) -  सफलता के स्वामी
93)  वीरगणपति  (Veerganapati) - वीर प्रभु
94)  विद्यावारिधि  (Vidyavaaridhi) - बुद्धि की देव
95)  विघ्नहर  (Vighnahar) - बाधाओं को दूर करने वाले
96)  विघ्नहर्त्ता  (Vighnahartta) - बुद्धि की देव
97)  विघ्नविनाशन  (Vighnavinashan) - बाधाओं के नाशक
98)  विघ्नराज  (Vighnaraaj) - सभी बाधाओं के मालिक
99)  विघ्नराजेन्द्र  (Vighnaraajendra) - बाधाओं के भगवान
100)  विघ्नविनाशाय  (Vighnavinashay) - बाधाओं के नाशक
101)  विघ्नेश्वर (Vighneshwar) - बाधाओं के हरने वाले
102)  विकट  (Vikat) - अत्यंत विशाल
103)  विनायक  (Vinayak) - सब का भगवान
104)  विश्वमुख  (Vshvamukh) - ब्रह्मांड के गुरु
105)  यज्ञकाय  (Yagyakaay) - सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला
106)  यशस्कर  (Yashaskar) - प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी
107)  यशस्विन  (Yashaswin) - सबसे लोकप्रिय देव
108)  योगाधिप (Yogadhip) - ध्यान के प्रभु

वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

महाकाली महाविजय यन्त्र / कवच धारण से लाभ

१.  महाकाली की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है | स्थायी सम्पत्ति में विशेष वृद्धि होती है और     स्थावर सम्पत्ति विषयक...