भगवती महाकाली दस महाविद्याओ में से एक प्रमुख महाविद्या शक्ति और काली कुल की अधिष्ठात्री है ,जिन्हें सृष्टि की मूल शक्ति कहा जाता है और इन्ही से समस्त महाविद्याओं की उत्पत्ति हुई है | समस्त महाविद्यायें ,समस्त शक्तियां इन्ही का विस्तार और स्वरुप हैं | यह वह मूल विद्या हैं जो इस ब्रह्माण्ड में सबकुछ दे सकने में समर्थ हैं | केवल यही वह महाविद्या हैं हैं जिनको शांत करने के लिए शिव को भी पैरों के नीचे आना पड़ता है | यही वह शक्ति हैं जिनके निकलने पर शिव भी शव हो जाते हैं | इनके बिना किसी शक्ति की उत्पत्ति ही संभव नहीं | जब सारे रास्ते बंद हो जाएँ तब यह एकमात्र शक्ति हैं जो सारे रास्ते खोल सकती हैं |जहाँ सभी महाविद्याओं का किसी कार्य विशेष में प्रभाव कम पड़ता है तब उनके साथ काली को ही संयुक्त करना पड़ता है | इन्ही से सृष्टि उत्पन्न होती है और इन्ही में विलीन हो जाती है | सभी महाविद्याओं का कार्यक्षेत्र सृष्टि उत्पत्ति से पालन और विभिन्न समस्याओं का निवारण तक है किन्तु भगवती काली ही वह हैं जो पुनः उत्पन्न कर सकती हैं ,कर्मानुसार स्थान दे सकती हैं यहाँ तक की केवल यही इस भवसागर से मुक्त भी कर सकती हैं अर्थात केवल यही मोक्ष दे सकती हैं | यही मूलाधार की अधिष्ठात्री हैं जिसके बिना न जीवन उत्पन्न हो सकता है न सृष्टि हो सकती है | इन्ही सब कारणों से तांत्रिक समुदाय में मूल उपास्या यही होती हैं और चाहे वैदिक ग्रन्थ हो ,शास्त्र हों ,तांत्रिक हों ,बौद्ध हों ,जैन हो अथवा कोई भी साधना हो ,पद्धति हो ,शास्त्र हों काली हर जगह उपस्थित होती हैं ,स्वरुप और नाम अलग हो सकता है |
यह पौराणिक ग्रन्थ मार्कंडेय पुराण के सप्तशती में दुर्गा के स्वरूपों में भी हैं जिन्हें वैष्णव , वैदिक और तांत्रिक सभी मानते हैं ,यह ब्रह्म पुराण के दस महाविद्या में भी हैं जो तंत्र का मूल ग्रन्थ में से एक है ,यह सभी आगमों में भी उपस्थित हैं तो इनके बिना निगम भी अधूरे हैं |इनकी उपस्थिति वेदों में भी है तो ज्योतिष में भी है और तंत्र में तो आवश्यक रूप से हैं ही |अन्य महाविद्यायें अथवा दुर्गा के अन्य स्वरुप एक दुसरे के मूल ग्रंथों में कम मिलते हैं पर काली हर जगह अनिवार्य रूप से होती हैं |इसी से इनके प्रभाव को समझा जा सकता है |इनके बिना कुंडलिनी जाग्रत नहीं हो सकती क्योकि कुंडलिनी इन्ही के अधीन और इन्ही के क्षेत्र में होती है |इनकी सक्रियता के बिना न कुंडलिनी सक्रीय हो सकती है न तो जीव ही कार्यरत रह सकता है और न ही वह कोई सृष्टि अर्थात संतान ही उत्पन्न कर सकता है |यही श्यामा रूप में पूजित होती हैं ,यही कामाख्या रूप में पूजित होती हैं ,यही दुर्गा रूप में पूजित होती हैं और यही श्री विद्या रूप में भी पूजित होती हैं |यह श्री विद्या के साथ संयुक्त होने पर श्यामा सुंदरी हो जाती हैं ,और रूद्र के साथ जुडकर रुद्रकाली हो जाती हैं |
महाकाली यन्त्र माता काली का निवास माना जाता है जिसमे वह अपने अंग विद्याओ ,शक्तियों ,देवों के साथ निवास करती है ,अतः यन्त्र के साथ इन सबका जुड़ाव और सानिध्य प्राप्त होता है ,|त्रिकोण इन्ही का यंत्र है जिसके बिना किसी महाविद्या का यन्त्र नहीं बनता अर्थात यह सभी में आवश्यक रूप से उपस्थित होती हैं | कोई भी त्रिकोण स्वतंत्र रूप से इन्ही को व्यक्त करता है जबकि यही त्रिकोण आपस में संयुक्त होकर अन्य महाविद्याओं को प्रकट करने लगता है |काली यन्त्र के अनेक उपयोग है ,यह धातु अथवा भोजपत्र पर बना हो सकता है ,पूजन में धातु के यन्त्र का ही अधिकतर उपयोग होता है ,पर सिद्ध व्यक्ति से प्राप्त भोजपत्र पर निर्मित यन्त्र बेहद प्रभावकारी होता है ,,धारण हेतु भोजपत्र के यन्त्र को धातु के खोल में बंदकर उपयोग करते है ,,जब व्यक्ति स्वयं साधना करने में सक्षम न हो तो यन्त्र धारण मात्र से उसे समस्त लाभ प्राप्त हो सकते है |
भगवती काली की कृपा से व्यक्ति की सार्वभौम उन्नति होती है ,शत्रु पराजित होते है ,सर्वत्र विजय मिलती है ,मुकदमो में विजय मिलती है ,अधिकारी वर्ग की अनुकूलता प्राप्त होती है ,शत्रु का विनाश होने लगता है ,,ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ,व्यक्ति के आभामंडल में परिवर्तन होने से लोग आकर्षित होते है ,प्रभावशालिता बढ़ जाती है ,वायव्य बाधाओं से सुरक्षा होती है ,तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव समाप्त हो जाते है ,सम्मान प्राप्त होता है ,वाद-विवाद में सफलता मिलती है ,प्रतियोगिता आदि में सफलता बढ़ जाती है |किसी भी अभिचार का प्रभाव कम हो जाता है |छोटे मोटे टोटके -नजर प्रभावित नहीं कर पाती |आकर्षण -वशीकरण का प्रभाव बढ़ता है |किसी भी साधना -उपासना में होने वाली त्रुटी का दुष्प्रभाव रुकता है |वायव्य आत्माओं और बाधाओं का शरीर पर प्रभाव कम हो जाता है अथवा समाप्त हो जाता है ,,यह समस्त प्रभाव यन्त्र धारण से भी प्राप्त होते है और साधना से भी ,साधना से व्यक्ति में स्वयं यह शक्ति उत्पन्न होती है ,यन्त्र धारण से यन्त्र के कारण यह उत्पन्न होता है ,अतः आज के समय में यह साधना अथवा यन्त्र धारण बेहद उपयोगी है |
जो लोग शत्रु-विरोधी से परेशान है ,अधिकारी वर्ग से परेशान है ,वायवीय बाधाओं से परेशान हो ,नवग्रह पीड़ा से पीड़ित हो ,,जिनके कार्य क्षेत्र में खतरे की संभावना हो ,दुर्घटना की संभावना अधिक हो |स्थायित्व का अभाव हो ,बार बार स्थानान्तरण से परेशान हों ,थक से कार्य न कर पाते हों ,ऊर्जा -उत्साह -शक्ति की कमी हो ,जिन्हें बहुत लोगों को नियंत्रित करना हो उनके लिए यह बहुत उपयोगी है |जो लोग बार-बार रोगादि से परेशान हो ,असाध्य और लंबी बीमारी से पीड़ित हो अथवा बीमारी हो किन्तु स्पष्ट कारण न पता हो |कोई अंग ठीक से कार्य न करता हो |स्वास्थ्य कमजोर हो |नपुंसकता हो अथवा स्त्रियों में स्त्री जन्य समस्या हो ,डिम्भ बन्ने में समस्या हो ,कमर -जाँघों -हड्डियों की समस्या हो ,मोटापे से परेशान हों ,आलस्य हो ,कहीं मन न लगता हो ,चिंता ,तनाव ,डिप्रेसन हो ,पूर्णिमा -अमावस्या को डिप्रेसन अथवा मन का विचलन होता हो उन्हें काली यन्त्र धारण करना चाहिए |
जिन्हें हमेशा बुरा होने की आशंका बनी रहती हो ,खुद अथवा परिवार के अनिष्ट की सम्भावना लगती हो ,अकेले में भय लगता हो अथवा बुरे स्वप्न आते हों ,कभी महसूस हो की कमरे में अथवा साथ में उनके अलावा भी कोई और है किन्तु कोई नजर न आये |कभी लगे कोई छू रहा है अथवा पीड़ित कर रहा है ,कभी कोई आभासी व्यक्ति दिखे अथवा आत्मा परेशान करे |कभी अर्ध स्वप्न में कोई छाती पर बैठ जाए ,लगे कोई गला दबा रहा है |किसी के साथ कोई शारीरिक सम्बन्ध बनाये किन्तु वह दिखाई न दे अथवा स्वप्न या निद्रा में ऐसा हो |बार -बार स्वप्न में कोई स्त्री -पुरुष दिखे जिससे दिक्कत महसूस हो |आय के स्रोतों में उतार-चढ़ाव से परेशान हो ,ऐसा लगता हो की किसी ने कोई अभिचार किया हो सकता है या लगे की कोई अपना या बाहरी अनिष्ट चाहता है तो ऐसे व्यक्तियों को भगवती काली की साधना -आराधना-पूजा करनी चाहिए साथ ही सिद्ध साधक से बनवाकर काली यंत्र चांदी के ताबीज में धारण करना चाहिए |यदि साधना उपासना न कर सकें तो भी कवच अवश्य पहनना चाहिए |
यदि आप में हीनभावना है ,आलस्य है ,चंचलता की कमी है दब्बू स्वभाव है ,हर कोई आपको दबाना चाहता है ,काम क्षमता में कमी है ,पौरुष में कमी है ,शुक्राणु में कमी हो ,यौन सुख पूर्ण प्राप्त न कर सके ,स्तम्भन का अभाव हो ,खुद को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाते ,किसी के सामने बात करने में हिचकिचाते हैं ,शारीरिक कमजोरी है अथवा अधिक मोटापा है |स्त्रियों में मासिक गड़बड़ी रहती है ,मूत्र रोग ,बार बार इन्फ़ेक्सन आदि यौनांग में होते हैं ,यौनेच्छा में कमी रहती है ,कभी यौनेच्छा की अति हो ,डिम्भ आदि की समस्या आती हो ,बंध्यापन हो ,रक्ताल्पता हो या अधिक रक्त बहता हो ,अतिरज मासिक हो ,तनाव ,हिस्टीरिया ,पागलपन ,मानसिक बाधाएं हों ,फोबिया ,भूत प्रेत की बाधाएं हों ,चिंता ,अनहोनी की आशंका हो ,भय महसूस हो ,प्रलाप करे ,कभी कभी हिंसक प्रवृत्ति जागे और कभी कायरता अथवा हींन भावना ,कमर में दर्द हो ,कमर की हड्डी में आवाज आये ,जाँघों और नसों की समस्या उतपन्न हो ,कमर का हिस्सा अधिक मोटा हो जाए जबकि जांघ और पैर पतले हों ,आलस्य रहे ,पसीने की गंध तेज हो ,कभी अकेले में महसूस हो की कोई और है कमरे में या साथ में पर कुछ दिखे नहीं ।कभी सोये हुए में किसी अदृश्य की अनुभूति हो या स्पर्श लगे तो समझें कि मूलाधार विकृत है अथवा कमजोर है ।भगवती काली रुष्ट हैं ,उनकी ऊर्जा की कमी है ।कुंडली में शनि + शुक्र + बुद्ध की स्थिति अच्छी नहीं अथवा वह समस्या उतपन्न कर रहा।इस स्थिति में काली का यन्त्र धारण करता लाभदायक होता है |
यन्त्र निर्माण काली साधक द्वारा ही हो सकता है और इसकी शक्ति साधक की शक्ति पर निर्भर करती है |यन्त्र निर्माण के बाद इसकी तंत्रोक्त प्राण प्रतिष्ठा आवश्यक होती है क्योंकि काली तंत्र की शक्ति हैं |इसके बाद इसका अभिमन्त्रण काली के मूल मंत्र से होता है |अभिमन्त्रण बाद हवन आवश्यक होता है |हवन के बाद इसी हवन के धुएं में चांदी के कवच में यन्त्र को भरकर धूपित भी किया जाता है| यहाँ साधक विशेष की जानकारी के अनुसार कवच में काली की ऊर्जा से सम्बन्धित वस्तुएं भी भरी जाती हैं -जैसे हम विशिष्ट जड़ी -बूटियाँ जो हमारे काली अनुष्ठान के समय अभिमंत्रित होती हैं इनमे यन्त्र के साथ रखते हैं ,हवन भष्म इसमें रखते हैं आदि |यह यन्त्र यदि पूर्ण अभिमंत्रित है तो बेहद शक्तिशाली हो जाता है |इसका परीक्षण उच्च स्तर का साधक कर सकता है अथवा जिन्हें भूत -प्रेत जैसी कोई समस्या हो उसके हाथ में रखते ही इसका प्रभाव मालूम होने लगता है |
यन्त्र /कवच का निर्माण मात्र काली का सिद्ध साधक ही कर सकता है क्योंकि काली तंत्र की देवी हैं और यन्त्र निर्माण में तंत्रोक्त पद्धति का ही प्रयोग होता है ,सामान्य कर्मकांडी अथवा साधक इसे नहीं बना सकता ,न ही किसी अन्य महाविद्या अथवा देवी -देवता का साधक इसे निर्मित कर सकता है |